धमकी
में मर गया जो न बाबे-नबर्द था,
इश्क़-ए-नबर्द-पेशः
तलबगारे मर्द था I
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अनुभव-विहीन योध्दा धमकी से डर गया,
जल कर विरह की अग्नि में प्रेमी जो मर गया I
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था
जिन्दगी में मौत का खटका लगा हुआ,
उड़ने
से पेश्तर भी मेरा रंग ज़र्द था I
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सूखे थे प्राण पहले से, निकले थे बाद में,
जीवन में सदा मौत को रखते थे याद में I
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तालीफ़े–नुस्ख़्हा-ए-वफ़ा कर रहा था
मैं,
मज्मूअः-ए-ख़याल
अभी फ़र्द- फ़र्द था I
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जो ढूँढ़ता था प्रेम के तत्वों का सार मैं,
बस जा रहूँ छोड़ अधूरा ये कार्य मैं I
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दिल-ता-जिगर
कि साहिले दरिया-ए-ख़ूँ है अब,
इस
रहगुज़र में जल्वः-ए-गुल आ के गर्द था
I
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था कल जहाँ पे पुष्प का लालित्य तुक्ष माल,
दिल से जिगर की राह वही रक्त से है लाल I
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जाती
है कोई कशमकश अन्दोहे-इश्क़ की,
दिल
भी अगर गया तो वही दिल का दर्द था I
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थमता नहीं कभी भी है संघर्ष प्रेम का,
पीड़ा में विद्यमान है आदर्श प्रेम का I
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अहबाब
चारः-साज़ि-ए-वहशत
न कर सके ,
ज़िन्दाँ
में भी ख़याल बयाबाँ-नवर्द था I
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आवारगी रूकी न मेरी कारागार में,
आज़ाद घूमता हूं मैं अपने विचार में I
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ये
लाशे-बेकफ़न ‘असद’-ए-ख़स्ता
जाँ की है,
हक़ मग़फ़िरत करे! अजब आज़ाद मर्द था I
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कमज़ोर था ज़रुर ‘असद’, बे-कफ़न है
लाश,
पा जाए मोक्ष मर के ये बंदा आजीब, काश!
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ग़ालिब की उर्दू शायरी का कवितात्मक रूपांतरण
Ghalib's urdu Poetry translated to Hindi in
Poetry form
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016
धमकी में मर गया.....
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