मिर्ज़ा ग़ालिब के चाचा का रिश्ता
लोहारु के नवाब के ख़ानदान में हुआ था । मिर्ज़ा ग़ालिब की शादी नवाब अहमद बख़्श ख़ान के
छोटे भाई मिर्ज़ा इलाही बख़्श खान की बेटी उमराव बेगम से हो गई । उस समय मिर्जा ग़ालिब 13 वर्ष तथा उमराव बेगम 11 वर्ष के थे । शादी के कुछ
ही समय बाद ग़ालिब दिल्ली में रहने लगे तथा अन्तिम समय तक दिल्ली में ही रहे ।
मिर्ज़ा ग़ालिब दिल्ली में लगभग
पचास साल रहे ।
इस पूरे समय में उन्होंने अपने लिए कोई मकान नहीं खरीदा । हमेशा किराये
के मकान में रहे ।
हाँ इतना ज़रुर है कि काफ़ी समय तक अपने प्रिय दोस्त मुहम्मद नसीरुद्दीन उर्फ़
मियाँ काले के मकान में बिना किराए के रहे थे । जब किसी मकान से जी उकता जाता था तो
मकान बदल लेते थे । सब से आख़िरी मकान जिस में उनका देहान्त हुआ वह एक मस्जिद के पीछे व
उस से मिला हुआ था । उस मकान के बारे में ग़ालिब
कहा करते थे :
मस्जिद के ज़ेर-ए-साया, इक घर बना लिया है,
ये बन्दः-ए-कमीना, हमसायः-ए-खुदा है
जिस तरह मिर्ज़ा ग़ालिब ने रहने
के लिए कभी मकान नहीं खरीदा, उसी तरह पढ़ने के लिए कभी कोई किताब
नहीं खरीदी । एक
आदमी दुकानों से किराए पर किताबें लाया करता था, उसी से मिर्ज़ा
ग़ालिब भी किताबें मंगवाते थे और पढ़ कर वापस कर दिया करते थे ।
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