गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

धमकी में मर गया.....





धमकी में मर गया जो न बाबे-नबर्द था,
इश्क़-ए-नबर्द-पेशः तलबगारे मर्द था I

अनुभव-विहीन योध्दा धमकी से डर गया,
जल कर विरह की अग्नि में प्रेमी जो मर गया I

था जिन्दगी में मौत का खटका लगा हुआ,
उड़ने से पेश्तर भी मेरा रंग ज़र्द था I

सूखे थे प्राण पहले से, निकले थे बाद में,
जीवन में सदा मौत को रखते थे याद में I

तालीफ़ेनुस्ख़्हा-ए-वफ़ा कर रहा था मैं,
मज्मूअः-ए-ख़याल अभी फ़र्द- फ़र्द था I

जो ढूँढ़ता था प्रेम के तत्वों का सार मैं,
बस जा रहूँ छोड़ अधूरा ये कार्य मैं I

दिल-ता-जिगर कि साहिले दरिया--ख़ूँ है अब,
इस रहगुज़र में जल्वः--गुल आ के गर्द था I

था कल जहाँ पे पुष्प का लालित्य तुक्ष माल,
दिल से जिगर की राह वही रक्त से है लाल I

जाती है कोई कशमकश अन्दोहे-इश्क़ की,
दिल भी अगर गया तो वही दिल का दर्द था I

थमता नहीं कभी भी है संघर्ष प्रेम का,
पीड़ा में विद्यमान है आदर्श प्रेम का I

अहबाब चारः-साज़ि--वहशत न कर सके ,
ज़िन्दाँ में भी ख़याल बयाबाँ-नवर्द था I

आवारगी रूकी न मेरी कारागार में,
आज़ाद घूमता हूं मैं अपने विचार में I

ये लाशे-बेकफ़न असद--ख़स्ता जाँ की है,
हक़  मग़फ़िरत करे! अजब आज़ाद मर्द था I

कमज़ोर था ज़रुर असद, बे-कफ़न है लाश,
पा जाए मोक्ष मर के ये बंदा आजीब, काश!

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