बुधवार, 25 जून 2014

न गुले नग़मा हूँ.....(शेष भाग)

नहीं दिल मे मेरे वो क़तरः-ए-ख़ूँ,
जिस से मिज़्गाँ न हुई हो गुलबाज़.

रक्त की बूंद तक नहीं बाक़ी,
मेरी पलकों से जो नहीं झाँकी.

ऐ तेरा ग़मज़ा यक क़लम अंगेज़,
ऐ तेरा ज़ुल्म सर-ब-सर अंदाज़.

क्रोध तेरा जो मार डाले है,
तेरा श्रंगार ही बचा ले है.

तू हुआ जलवागर मुबारक हो,
रेज़िशे सज्दा-ए-जबीने नियाज़.

तू प्रकट हो गया, बधाई है!
मैंने चरणों की धूल पाई है.

मुझको पूछा तो कुछ ग़ज़ब न हुआ,
मैं ग़रीब और तू ग़रीब नवाज़.

की जो मुझ पर कृपा तो क्या अचरज,
एक मैं हीन और तू दिग्गज.

असदुल्लाह ख़ाँ तमाम हुआ,
ऐ दरेग़ा वो रिंदे शाहिद बाज़.

असदुल्लाह ख़ाँ समाप्त हुआ,
प्रेम रस पान जिस पे व्याप्त हुआ.

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