बुधवार, 8 जनवरी 2014

ग़ालिब को कौन नहीं जानता?

ग़ालिब को कौन नहीं जानता ? बक़ौल ग़ालिब:

होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को ना जाने,
शायर तो वो अच्छा है प-बद्नाम बहुत है.

         ग़ालिब की शायरी ही क्या उर्दू के अन्य साहित्य के साथ भी यह समस्या है कि अब उसको समझने वाले कम होते जा रहे हैं. उर्दू लिपि के पढ़ने वाले कम हैं परंतु उर्दू भाषा को पसंद करने वालों की कोई कमी नहीं है.
          एक समय था जब फारसी भाषा में उपलब्ध साहित्य के एक भंडार का अनुवाद उर्दू में किया गया. मैं समझता हूँ आज उर्दू से हिंदी में अनुवाद की ज़रूरत है. इसी ज़रूरत को पूरा करने के उद्देश्य से मैंने ग़ालिब की शायरी के रूपांतरण की जुर'अत की है.
           सवाल यह है कि ग़ालिब ही क्यूँ? तो भई वो इसलिये कि ग़ालिब को समझना किसी हद तक नामुम्किन नहीं तो मुश्किल ज़रूर है. ग़ालिब की शायरी के भावार्थ का वर्णन कई मशहूर कवियों द्वारा किया गया है और बहुत अच्छा किया गया है पर केवल भावार्थ शेर की खूबसूरती को प्राप्त करने में अकसर असफल सिद्ध होता है. इसलिये मेरी यह कोशिश है कि कविता के भाव कविता के ही रूप में हिंदी में व्यक्त करूँ. अगर इस कोशिश में तनिक भी कामयाबी मिली तो अपने आप को भाग्यशाली समझूंगा.
      मिसाल के तौर पर एक शेर और उसका हिंदी रूप (लाल रंग में) नीचे प्रस्तुत है:
 शब ख़ुमारे शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ः था,
 ता मुहीत-ए-बादः सूरतख़ानः-ए-ख़मयाज़ः था.

रात साक़ी के लिये, बस, थी नहीं महफ़िल में ताब,
ले रही अंगड़ाइयाँ थी, बस, समुंदर में शराब.


तो इसी क्रम में आगे आगे देखिये होता है क्या......

19 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! मेरे जैसे उर्दू में बेहद गरीब के लिये यह ब्लॉग आशा की किरण है! आगे की पोस्टों का इंतजार रहेगा!
    ब्लॉग बुकमार्क कर लिया है मैने!

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    1. ज्ञानदुत्त जी, आप का सदैव आभारी रहूंगा कि आप ही के मार्गदर्श्न में ब्लॉग करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. धन्यवाद.

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  2. स्वागतम कबीर अहमद जी. आपने पद्यानुवाद बहुत अच्छा किया है. लेकिन सिर्फ एक शे'र ? आपकी आने वाली पोस्ट की प्रतीक्षा कर रहा हूं.

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    1. धन्यवाद मैथिली गुप्त जी. जल्द ही अपनी टूटी फूटी कोशिशें प्रस्तुत करता रहूंगा और आप की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करूंगा.

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  3. Hats off to you sir for taking such an undertaking.

    "Hoga koi aisa bhi jo Ghalib ko na jaane,
    shayar to woh acchha hai, par badnaam bahut hai."

    This is the actual couplet, if I remember correctly.
    I have bookmarked your page and am looking forward to more posts by you.

    With best regards,
    Neeraj

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    1. Wah! Neeraj Sahab, Wah!!
      In fact, hats off to you for correcting my mistake. You are absolutely right. I feel privileged to be in the company of knowledgeable persons like you. Will try to come up to your expectations and will look forward to your reactions.
      Regards,

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  4. वाह! बहुत ही अच्छी पहल.
    आगे की कड़ियों का इंतज़ार रहेगा.
    बधाई और शुभकामनाएं.

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  5. Dear Kabeer,
    Yaar mazaa aa gaya. Waakkai, mai aapke translation ke bina bahut sundar thinking se vanchit rah gayaa hota.
    Mujhe kaas taur se Laila waala aur Bawalepan me registaan ki taraf kadam waala bahut jyaada achchhaa laga.
    Aapne apne 4 hunar hum logon ko dikhaaye hai -
    1. Gaalib ki shaayari ki achchhi samajh
    2. Udru/Faarasi kaa bahut achchaa gyaan
    3. Hindi ki majboot pakad
    4. Internet kaa sundar prayog
    Regards,
    Prem Chandra, CME ECoR

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    1. डियर प्रेम चंद्रा जी,
      ज़र्रानवाज़ी के लिये शुक्रिया. लेकिन मैं अपने को इन अल्फाज़ के क़ाबिल हर्गिज़ नहीं समझता हूँ. इसीलिये आप जैसे क़द्रदानों के मार्गदर्शन के इंतेज़ार में रहता हूं. बहुत बहुत धन्यवाद!

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