बुधवार, 8 जनवरी 2014

शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रस्तख़ेज़-अन्दाज़ा था

                        (Original शे'र काले रंग तथा रूपांतरण लाल रंग में)                       

शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रस्तख़ेज़-अन्दाज़ा था
ता मुहीत-ए-बादा
 सूरत-ख़ाना-ए-ख़मियाज़ा  था

रात साक़ी के लिये, बस, थी नहीं महफ़िल में ताब,
ले रही अंगड़ाइयाँ थी, बस, समुंदर में शराब

यक क़दम वहशत से दरस-ए-दफ़तर-ए-इमकां
 खुला
जादा
 अजज़ा-ए-दो-आ़लम-दश्त का शीराज़ा था

बावलेपन में बढ़ाये पग जो रेगिस्तान को,
दिव्य दर्शन का मिला तब मार्ग मुझ अनजान को.

मान-ए-वहशत-ख़िरामीहा-ए-लैला
 कौन है
ख़ाना-ए-मजनूं-ए-सहरागिर्द
 बे-दरवाज़ा था
(इस शे'र के दो रूपांतरण किये हैं)

क्यूँ न निकली घर से लैला लाँघ सीमायें सभी,
बे पता मजनूँ फिरे था तोड़ बाधायें सभी.

क्यूँ नहीं ले लेता आलिंगन में वो पर्मात्मा,
बे पते के ढ़ूँढ़्ती फिरती है जिसको आत्मा.

पूछ मत रुसवाई-ए-अन्दाज़-ए-इस्तिग़ना-ए-हुस्न
दस्त
 मरहून-ए-हिना रुख़सार रहन-ए-ग़ाज़: था

रूप की यूँ आत्म-निर्भरता हुई बदनाम है,
उसको मेहंदी और कुमकुम से भला क्या काम है?

नाला-ए-दिल ने दिये औराक़-ए-लख़त-ए-दिल ब बाद
यादगार-ए-नाल: इक दीवान-ए-बे-शीराज़:
 था

दिल के टुकड़े पृष्ठ थे एक काव्य संग्रह के कभी,
कर दिये बर्बाद मेरे दिल की आहों ने सभी


4 टिप्‍पणियां:

  1. Galib ot bahut teda hai yaar, main to kuchh aur hi samjhta tha

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  2. लगता है करनी पड़ेगी, कस के मेहनत हमें।
    वह तर्जुमा समझने को भी, जो किया है आपने! :-)

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  3. Yeh Ghalib ke aarambhik daur ki rachna hai isliye
    kuch zyada hi persianized hai. baad ki rachnaain itni
    complicated nahin hain.

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  4. Translating a poem with rhyming is a difficult job.. to a great extent you have succeded in that. Koshish jaari rakhiye..

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