मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ान ‘ग़ालिब’ आगरा में 1797 ई. में पैदा हुए. 1869 ई.
में दिल्ली में उनकी मृत्यु हुई और वहीं दफ़्न हुए. ग़ालिब के पिता का नाम मिर्ज़ा अब्दुल्लाह
बेग ख़ान और दादा का नाम मिर्ज़ा क़ोक़न बेग ख़ान था. मिर्ज़ा ग़ालिब की पत्नी उमराओ बेगम, लोहारू के नवाब इलाही बख़्श की बेटी थीं. मिर्ज़ा के सात बच्चे हुए पर सभी बचपन में ही
गुज़र गये.
उनके मज़ार की तस्वीर नीचे प्रस्तुत है.
क्या ख़ूब कह गये:
नज़र में है हमारी जादः-ए-राहे-फ़ना
ग़ालिब,
कि ये शीराज़ः है आलम
के अज्ज़ा-ए-परेशाँ का.
शे’र का रूपांतरण :
मिटूंगा मैं, कि होना “एक”
को “प्रत्येक” करता है,
तो मिट जाना ही खंडित सृष्टि को फिर एक करता है
गालिब जो दे गये हैं, वह काफी है उन्हे अमिट रखने के लिये!
जवाब देंहटाएंमिटने पर एक और शेर याद आ रहा है:
जवाब देंहटाएंया रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये,
लौह-ए-जहाँ पे हर्फ-मुकर्रर नहीं हूँ मैं.