नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है, मैं
रश्क से गुज़रा
क्योंकर कहूँ, लो नाम न उनका मेरे आगे
क्योंकर कहूँ, लो नाम न उनका मेरे आगे
ले नाम तेरा कोई भी फूटें जो मेरे भाग्य,
संदेह घृणा का न हो,
ईर्ष्या का करूँ त्याग
ख़ुश होते हैं, पर
वस्ल में, यूँ मर नहीं जाते
आई शबे-हिजराँ की तमन्ना, मेरे आगे
आई शबे-हिजराँ की तमन्ना, मेरे आगे
मरने की तमन्ना जो किया था वियोग में,
लो! पूरी हुई आज मिलन के सुयोग में
रक्त-अश्रु की धारा से बना रक्त का सागर,
पर अब भी छलकता है मेरे शोक का गागर
हाथों में नहीं जान पर आँखों में बची है,
मत जाम हटाओ अभी, क्या जल्दी मची है
हमपेशा-ओ-हम्मशरब-ओ-हमराज़ है मेरा
'ग़ालिब' को बुरा क्यों कहो अच्छा, मेरे आगे
हमपेशा-ओ-हम्मशरब-ओ-हमराज़ है मेरा
'ग़ालिब' को बुरा क्यों कहो अच्छा, मेरे आगे
पीता है मेरे साथ वो दिलदार मेरा है,
‘ग़ालिब’ को बुरा मत कहो वो यार मेरा है
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