सोमवार, 27 जनवरी 2014

दाएम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं (शेष भाग)

किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे?
लाल-ओ-ज़मुर्रुदो-ज़र-ओ-गौहर नहीं हूँ मैं

क्यूँ नहीं रखते मुझे अपने क़रीब,
हूँ नहीं हीरा जवाहर मैं ग़रीब.


रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यों दरेग़
रुतबे में मेहर-ओ-माह
 से कमतर नहीं हूँ मैं


मेरी पलकों पर नहीं रखते क़दम,
मुझ को आँका चांद तारों से भी कम.


करते हो मुझको मनअ़-ए-क़दम-बोस किस लिये
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं
?


रोकते हो क्यूँ चरण-स्पर्श से ?                                                       
क्या मैं कुछ कम हूँ तुम्हारे फ़र्श से ?

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार हो, दो शाह को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे "नौकर नहीं हूँ मैं"

हो गये नौकर, उड़ा सारा ग़ुरूर,
हाथ बांधो और बोलो “जी हुज़ूर”

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